वो वक़्त कि धारा क्यु पलट गयि,
और क्यु तुम बदल गये,
हमसे क्या खता हुई जो,
तुम हमारी चाहत को भि खुद से बेदखल कर गये,
याद आती है हमको तुम्हारि हर पल,
जाने किस जहाँ मे हमे छोड तुम ढल गये,
लौट आओ मेरे खातिर इन सुनि गलियो मे,
तुम बिन ना जाने क्युं हम अपनी खुशियो को निगल गये..!
लेखक: रोशन दुबे (समय: 7:47 रात्रि)
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