ठहर जा ओ गम के बादल ठहर जा,
अब तुझमे वो कल जैसि ताकत नहि,
वक़्त तो बदलता है हर किसि के लिये,
एक तु हि खुदा कि लिखि अकेलि इबादत नहि,
ठहर जा ओ गम के बादल ठहर जा,
अब तुझमे वो कल जैसि ताकत नहि,
तेरा भि अंत होगा हर एक कालि परछायि कि तरह,
पुरी जिंदगि अंधेरा मे जिये ऐसे उजाले हम नहि,
भिगते तो है तुझसे सब मगर,
हर बार जो भीगे वो साहिल हम नहि,
ठहर जा ओ गम के बादल ठहर जा,
अब तुझमे वो कल जैसि ताकत नहि,
लेखक : रोशन धर दुबे
लेखन दिनाक : 25 दिसम्बर 2011 (दोपहर 11:40 )
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