हम तो थे अंजान मगर पा गये अपनी अनेको पह्चान,
जब ना था हमे सहि दिशओ का ज्ञान तब उनके प्यार से जगा मेरे अंदर छिपे इंसान,
रुप थे अनेक मेरे ये जान मै था बहुत हैरान,
मेरे अंदर थे वो इंसान जिंनसे कभि ना मिला था मै नादान,
कोई था खिलडि, तो कोई था अनाडि,
कोई था सायर, तो कोई था प्रोग्रामर,
सच जान ये मै था बहुत हैरान,
मगर ये दिलायेंगे मुझे इस दुनिया मे एक अलग पहचान,
जिनसे मिलेगि वो सफलता जिसकि है मुझे पुर्वानुमान,
आप भि झांक कर देखो खुद मे क्युंकि आप मे भि है वो इंसान.
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हर सख्स के अंदर कयि तरह के लोग होते है...इसका मतलबा ये है कि एक इंसान कयि तरह कि जिंदगि को आसानि से जिता है मगर उसे इस बात का पता नहि चल पाता..!
अत: मेरा आपसे अनुरोध है कि अपने अंदर कि छिपे सच को मेह्सुस करिये और फिर
सफलता आपके कदमो मे होगि..! ******
लेखक:रोशन दूबे
लेखन दिनाँक: 3 DEC २०११ (दोपहर 3 बजकर 30 मिनट)
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