रात का सेहरा हो, उनपे ख्वाबों का पहरा हो,
आसमां मे बादल हों, और हवाओं मे ठण्ड गहरा हो,
हर तरफ झरनों से कल कल कि आवाज आये,
और फिजाओं मे एक हसीन चांन्द नजर आये,
झुमे सारे पेड पौधे और चिडिया गीत गाये,
एक चमकता सितारा जब मेरे करिब आये,
बादल रुक रुक के गरजे, बुंद बुंद पानी बरसे,
चले जब मेरी ओर, रुक रुक वो मतवाली चाल,
देख उसका यौवन, खुदा भी उसे पाने को तरसे,
देख उसकि म्रग्नयनी आंखों मे,
मेरा रोम रोम उसको मिलने को तरसे,
उसकि आंखों मे बस जाने कि खातिर,
बरसों से मेरी आंखों मे मोती है बरसे,
चांद जब मेरे घर को आये,
वो भी देख हुस्न उसका घबराये,
बिन सुरज वो भी चमकता जाये,
देख भव्य सुंदरता, उसका भी मन ललचाये,
जागु मै ख्वाबों मे पुरी पुरी रात,
फिर भी पाने को उसका साथ मेरा मन तरस जाये,
जैसे जैसे चाहत का ये गागर भरता जायें,
चांद अकेला मुझे छोड्ने को, सुबह सवेरे तक आये,
सुरज के आते हि मेरे सर पर,
वो मुझसे दूर को चली जाये,
देखता रहुं मै रात कि राह,
कब वो फिर आये और मुझको मेरी चाहत दे जाये..!!
लेखक : रोशन धर दुबे
लेखन तिथि : 19 जुन 2012
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