उमर का ये पडाव कैसा है?
जहां सब कुछ तो है, फिर भि अकेलेपन का दिल पे घाव कैसा है?
अपना तो हर कोई है आंखो के सामने,
फिर भि आंखो मे एक इंतेजार कैसा है?
चाहते तो है सबको एक बराबर इसी दिल से,
फिर भि ये चाहत का एक नया अंदाज कैसा है?
बचपन से आज तक जो रोता था मै आंखो मे आंसुओ को लेकर,
आज मेरा ये दिल ही दिल मे रोने का अंदाज कैसा है?
जो कभी ना बोल पाया अपने चाहने वालो से,
वो आज बोलने को मेरा दिल तरसता है,
ये आज अचानक ये मेरे दिल क हाल कैसा है?
लेखक : रोशन धर दुबे
सयरी लिखने का सहि समय: 16 नवम्बर 2011 (दोपहर 3:14)
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