जो घर का आंगन प्यार भरी खिल्खिलाहट से सजता था,
आज वो आंसुओ कि मोतियो से सजता है !
मिट गया वो देश जो कभि सोने से सजता था,
सोने कि जगह ये देश अब अपनो के खून से सजता है !!
कबके मर गये इस देश को मिटाने वाले,
फिर भी इस देश को अपनो से डर लगता है !!!
कल तक जो था खुशियो का महल,
अब उस महल मे जीना एक सपना सा लगता है !V
दुसरो को छोडो यहाँ तो हर कोई अपना भी बिकता है,
असलियत को तो छोडो यहाँ सपना भी बिकता है V
बेचने को तो यहाँ पे जजबात भी बिकता है,
ये हिंदुस्तान है यहाँ पे कत्लेआम भी बिकता है V!
लेखक:रोशन दूबे
लेखन दिनाँक: 26 नवम्बर २०११
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