किस जुबान से हम अपने दर्द को किताब मे छपवाये !
जिस हाथ से किसि को खुशि ना दे सका,
उन हथो से गम कि किताब कैसे बटवाये !!
जो कभी किसि के गम मे सरिक ना हुआ,
उसे क्यु गम कि याद दिलाये !!!
हमे तो आदत सि पड गयी है जिंदगी को गम मे जिने कि,
जो ना जिया आज तक एक पल भि,
उसे क्यु इस गम कि दुनिया मे लाये ?
लेखक :: रोशन धर दुबे
तिथि :: 25 नवम्बर 2011
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