Friday, December 2, 2011

सुरज कि किरनो ने फिर अपना उजाला फैलाया है,

सुरज कि किरनो ने फिर अपना उजाला फैलाया है,
मुर्गे ने बांग देकर फिर सबको जगाया है,

मां ने चाय हाथ मे थमा फिर प्यार से सर पे सहलाया है,
पापा ने बाहर से हमको आज फिर आवाज लगाया है,

मेरे भैया ने मुझे आज फिर दोबारा जगाया है,
बहना ने खुशियो से भरा एक चाय का प्याला फिर एक बार बनाया है,

आज मौसम मे फिर पुरानी खुशियों का खुमार छाया है,
लगता है ये रोशन आज सपने मे फिर घर घुम आया है,

जिवन मे मेरे ये कौन सा पल आया है,
अपनी खुशियो को अपने से दूर छोड ये किन खुशियो को पाने आया है?

सुरज कि कस्ति मे रोशनी है मगर,
रोशन अपनी रोशनी कहिं दूर छोड आया है,

आज खुश तो है ये दिल मेरा घर को याद करके मगर,
ना जाने आंखो मे ये आंसुओ का मोति क्युं आया है?

रोशन तो है यहां मगर अपना दिल अपनो के पास छोड आया है,
लगता है ये रोशन एक बार फिर सपने मे अपनो से मिल आया है,

अक्सर जिससे हम प्यार करते है वहि हमारी जिंदगि कहलाया है,
आज सुबह ना जाने क्युं इतनी अछ्छि लगि कि सुरज भी रोशनी से भर आया है,

आप सबको भी मिले मेरे जैसी खुशियो के सपने हर गुजरी रात मे,
यहि दुआ लेकर ये रोशन अपनी रोशनी बिखेरने आया है !

लेखक:रोशन दूबे
लेखन दिनाँक: 2 DEC २०११ (सुबह 7 बजकर 30 मिनट)

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