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Sunday, November 27, 2011

ये वक़्त का दरिया तो समुंदर से भी गहरा होता है,


ये वक़्त का दरिया तो समुंदर से भी गहरा होता है,
इसमे जीतना भी डुबो ये खतम हि नहि होता है,

एक बार समुन्दर को पार करने कि कोशिश् कर तो सकते है,
मगर ये वक़्त को तो कोई किसि वक़्त भी पार नहि कर सकता है,

एक वक़्त को दरिया को रोक हजार पुल बना तो सकते है,
मगर वक़्त को रोक कोइ अपनि बिछडि खुशियां नहि सजा सकता है

रोकने कि कोशिश तो हर कोइ करता है इस वक़्त को,
मगर वक़्त किसि को एक वक़्त मे रुकने हि नहि देता है,

जिस तरह दरिया बहते हुए हर वक़्त सबको भाता है,
वक़्त भि उसि तरह दौडते हि सबको नजर आता है,

जिस तरह दरिया कभि खुशि तो कभि गम दे जाता है,
वक़्त भि ठीक उसि तरह सबको दिन दिखलाता है,

ये वक़्त भि ना जाने कौन सा गुल खिलाता है,
सबको कभि हंसाता है तो कभि रुलाता है,

वक़्त तो दरिया से भी तेज है यारो,
जो लहरो सा बल खा कर फिर उसि मोड पे नये जिवन को लाता है..!

लेखक:रोशन दूबे
लेखन दिनाँक: 27 नवम्बर २०११ (रात्रि 9 बजकर 45 मिनट)