Sunday, April 15, 2012

माथे पे लगा के तिलक तेरे धूल का, ऐ मेरे वतन मै तुमको नमन करता हुं ।


माथे पे लगा के तिलक तेरे धूल का,
ऐ मेरे वतन मै तुमको नमन करता हुं ।

तुम्हारे हि दिये हुए गंगा जल से,
मै अपने तन-मन को धुलता हुं ॥

तुझमे हि समायी है पुरी दुनिया मेरी,
तेरे दिये अन्न से मै अपना जिविकोपार्जन करता हुं ॥।

तुम हि मेरे दाता, तुम हि हो मेरे विधाता,
तुममे हि लिखि है, मेरी जिवन कि सारी गाथा ॥॥

ऐ मेरे वतन, मै तुम्हे अपना सब कुछ अर्पन करता हुं,
तुमने हि दि है मुझे ये दुनिया,
तुमको हि अपनी दुनिया अर्पन करता हुं ॥॥।

ऐ मेरे इश्वर तुमने हि दि है मुझे ये जिंदगी,
आज तुम्हे अपना जिवन समर्पन करता हु ॥।॥।

तुम्हारी काया है विशाल,
तुममे समाया मेरा पुरा जिवन काल,
तुमको ऐ मेरे विधाता सत-सत नमन करता हुं ॥॥॥।

तुम हो अतुलनिय ,
तुममे छिपि इस दुनिया कि नींव,

तुम्हारा दिया हि है यहां सब कुछ,
आज तुम्हे हि अर्पन करता हुं॥॥॥॥

लेखक : रोशन धर दुबे
लेखन तिथी : 4 अप्रैल 2012

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